Thursday 12 May 2011

नीतीश, बिजली, बवाल और सच


बिजली संकट को लेकर इन दिनों बिहार में घमासान छिड़ा है। चहुंओर। बस नजर
घुमाइए दिख जाएगा। क्‍या यह घमासान प्रायोजित है ?  आपने इस दिशा में
सोचने की पहल की ? आइए, आपको कुछ बातें याद दिलाते हैं, शायद इससे
तस्‍वीर साफ हो जाए।

बात नंबर एक - बिहार के मुख्‍यमंत्री नीतीश कुमार हर दिन केन्‍द्र की
मनमोहन सरकार को कोस रहे हैं। केन्‍द्र भी सफाई दे रहा है। यानी आरोप -
प्रत्‍यारोप का दौर जारी है। जनता भी इसे चाव से पसंद कर रही है। अखबार
इस बात के सुबूत हैं। हर दिन खबरें छपने का मतलब है, खबर बिक रही है। और
बिकने का मतलब है खरीदने वाली जनता पसंद कर रही है। तो भइया, असल बात यह है कि राज्‍य और केन्‍द्र के बीच चल रहे इस घमासान की जमीन विधानसभा
चुनाव के दौरान ही तैयार हो गई थी। चुनावी सभाओं में नीतीश कुमार
चिल्‍ला-चिल्‍ला कर कह रहे थे- अब बिजली के क्षेत्र में काम करना है।

चुनाव खत्‍म हुआ। जीत का सेहरा बंध गया। काम करने का समय आ गया है। सो,
बिजली मुद्दे को लेकर उनकी सियासत शुरू हो गई है। यह कब तक चलती रहेगी,
सही-सही जवाब मुख्‍यमंत्री नीतीश कुमार ही दे पाएंगे।

बात नंबर दो - बिजली की किल्‍लत लालू-राबड़ी के राजपाठ में सबसे अधिक थी।
क्‍योंकि तब सुशासन नहीं जंगल राज था, जैसा कि नीतीश कुमार कहते हैं।
'साधु' शेर बनकर जंगल में मंगल मनाया रहे थे। सूबे में नीतीश कुमार की
सरकार बनने के बाद सुशासन आ गया। यही नहीं पांच साल में ही हालत भी तेजी
से सुधर गए। लगभग सबकुछ दुरुस्‍त होता दिख रहा है। लेकिन बिजली को लेकर
सुशासन में अचनाक बवाल मच गया। जनता हर जिले में, हर गांव में, हर
टोला-मुहल्‍ला में टायर जलाकर, लाठी-डंडा लेकर विरोध प्रदर्शन करने लगी।
बिजली दो, बिजली दो... के नारे लगा रही है। अखबरों में फोटोयुक्‍त खबरें
छप रही हैं। अब सवाल उठता है कि जनता क्‍या सचमुच जागरूक हो गई है ?  यदि
जवाब हां है तो तब जनता इस कदर विरोध क्‍यों नहीं कर रही थी ?  अखबार
वाले इस कदर खबरें क्‍यों नहीं छाप रहे थे ? अचानक सबकुछ जागरूक कैसे हो
गया ? क्‍या जनता और मीडिया पर नीतीश का कोई मंत्र काम कर रहा है ?


हकीकत क्‍या है -  दरअसल, मुख्‍यमंत्री नीतीश कुमार का विकास माडल
वर्ल्‍ड बैंक पोशक है। राज्‍य सरकार सबकुछ निजी हाथों में सौंपने के लिए
आतुर है। इसी क्रम में सूबे में बिजली के बाजारीकरण की तैयारी पूरी हो
चुकी है। प्रथम चरण में पटना, मुजफ्फरपुर और भागलपुर में बिजली को निजी
हाथों में देने की योजना है। संभव है कुछ ही महीनों में यह खबर सामने आ
भी जाए। नीतीश कुमार को अच्‍छी तरह पता है कि बिजली के बाजारीकरण का
विरोध होगा। उनके लोक कल्‍याणकारी राज्‍य की छवि प्रभावित हो सकती है।
इससे बचने के लिए उन्‍होंने खास रणनीति बनाई है। जिसके तहत जदयू
कार्यकर्ता जगह-जगह जनता को विरोध प्रदर्शन के लिए उकसा रहे हैं। अगर आप
गौर फरमाएं तो इन विरोध प्रदर्शनों में कहीं भी मुख्‍यमंत्री का पुतला
दहन नहीं हो रहा है। टारगेट कोई और होता है। इतना ही नहीं नीतीश कुमार के
इशारे पर नाचने वाले सूबे के  अखबारों ने भी ऐसी खबरों को प्रमुखता से
स्‍थान देने की हिदायत अपने रिपोर्टरों को दे रखी है। दरअसल,
मुख्‍यमंत्री नीतीश कुमार आने वाले दिनों में यह कहकर बिजली को निजी
हाथों में सौंपना चाह रहे हैं कि जनता को इससे राहत मिलेगी। जनता लगातार
बिजली की मांग कर रही थी, सो उन्‍होंने ऐसा कदम मजबूरी में उठाया।
केन्‍द्र ने उनकी कोई मदद नहीं की। आदि आदि। यानी कुल मिलाकर बिजली के
बाजारीकरण का खेल चल रहा है।

एम अखलाक

2 comments:

  1. बिहार में विकास को सिर्फ पोशाक नहीं कह सकते हैं. उस बिहार को जिसने महसूस किया होगा ऐसा वह ही बता पायेगा इस बिहार की विकास की बात.
    ये सच है की बिहार में बिजली की किल्लत है.... शायद मैं या आप भी अगर नितीश कुमार की जगह होते तो जादू की छड़ी घुमा कर बिहार में बिजली पैदा नहीं कर सकते. उसके लिए जरूरत है लम्बी पहल की , केंद्र का सहयोग इसे आसन बना सकता हा जो बिहार को नसीब नहीं है .

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  2. प्रतिक्रिया देने के लिए जिंदाबाद।
    मित्र, मै ऐसा नहीं कह रहा हूं कि बिहार विकास के पथ पर अग्रसर नहीं है। मैंने अपने लेख में साफ कहा है - कुल मिलाकर बिजली के
    बाजारीकरण का खेल चल रहा है।
    अब यह कदम अच्‍छा है या गलत, लोग तय करें। समय परिणाम बताएगा।
    एम. अखलाक

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